बूँद बनूँ झर जाऊँ बूँद बनूँ झर जाऊँ
उन पँखुड़ियों में से आधी तो अक्सर ज़िम्मेदारियों पर ही झर जाती है उन पँखुड़ियों में से आधी तो अक्सर ज़िम्मेदारियों पर ही झर जाती है
उम्र की डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है... उम्र की डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है...
दो बूँद दो बूँद
जानती हूँ मैं.. वो मुझे तलाश रहा है इन तस्वीरों में पर...! जानती हूँ मैं.. वो मुझे तलाश रहा है इन तस्वीरों में पर...!
बड़ी बनूँ कुछ मैं भी बड़ी बनूँ कुछ मैं भी